शहीद हो रहा है सूरज इंसानियत का आज
ख़ामोशी शाम की ये गूंजती है कानों में
कतरे खून के अभी भी बिखरे हैं उफक पर
दरिंदगी सरे आम बिकती है आज दुकानों में
जिम्मेवारी अब इन चाँद सितारों की ही है
माहोल सुबह तक आपे से बाहर जाने न पाए
कोई सूरज उठने की हिम्मत भी न कर सके
कि ये अँधेरा इतना भी दिलों पे छाने न पाए
दिया सत्य का हर एक घर में आज जलाना होगा
हो जब तक न सुबह धैर्य हमको दिखाना होगा
संभव नहीं की भगत एक भी जन्मा न हो माँ ने मेरी
सपूतों को फिर एक बार पौरुष का परिचय कराना होगा
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