सर्द मौसम हो या तेज़ हवा के झोंके
या फिर छुपा हो आसमां बादलों के तले
हर शाम नीले आसमां की ख्वाहिश
खीच ही लाती है पंछियों को घोंसलों से
मौसम की सर्द तो शाम के जवां इरादों में गुम हो जाती है कहीं
झोंके हवा के सहने को झुंड अपने ही aerodynamic आकार बना लेते हैं
झाड़ियाँ, दीवार और माँ का आँचल तो होते नहीं आसमान में छुपने को
इसलिए बदरिया शाम को ही लुका छिपी का लुत्फ़ उठा लेते हैं
अचानक ही नजर पड़ी जब आसमां में
आकार बदलते पंछियों के झुण्ड पर कल
तो याद हो आये मुझे बचपन के वो कुछ पल
जब इन्तजार रहता था हर शाम
घडी की छोटी सुई के पांच पर पहुचने का
और फिर दो मिनट हिम्मत जुटाते थे
माँ से, खेलने जाऊं, ये साहसिक प्रश्न पूछने का
हर रोज कुछ अलग shots लगाने की योजनायें
कुछ बेहतरीन catch गुपकने के भरसक प्रयास
उन दो घंटों की अलग ही दुनिया थी
जहाँ स्कूल के भारी बस्तों का बोझ नहीं था
बगल में बैठे दोस्त से छुप कर बात करने में
मास्टर साहब का खौफ नहीं था
मजे की बात ये थी कि
वैसे हर घंटे भूख प्यास और न जाने क्या क्या लगता था
मगर इन दो घंटों में किसी और बात का होश भी नहीं था
अगर कभी रात को बिजली विभाग की दया हो जाये
तो हमें भी छुपा छुपी खेलने का मौका मिल जाता था
कभी पीपल के पीछे तो कभी पडोसी के बरामदे में
दुबक कर बैठ जाते थे
कभी चुपके से दीदी से पूछ लेने पे
झगडे करने में भी बड़े मजे आते थे
मगर अब तो स्कूल के बस्ते और भी भरी हैं
टयूसन वाले मास्टर साहब भी शाम को ही खली हैं
अब तो कार्टून और कंप्यूटर ही मन बहलाते हैं
वीक एंड पे पापा कभी कभी पार्क भी ले जाते हैं